Saturday, February 09, 2008

MATURITY ....

उनदिनों कई बार हमने अक्सर आसमान से चाँद-तारे तोड़े . 
बात-बात मे पर्वत झुकाए और नदियाँ बहाई . 
इन्द्रधनुष चुराकर माथे की बिंदिया सजाई . 
वक़्त को मुट्ठी मे भिंचा और दुनिया को बाँहों मे समेटा . 
पर तुमने notice भी नही किया.... .

फ़िर, 
 तुम्हारी साँसों की संगीत मे डूबा . 
आंखों से मोती बीने, . 
चेहरे पे मुस्कराहट खिलाई . 
बिना वज़ह कई रात जगे . 
बिसीओं कविताएँ लिख डाली . 
जुल्फों मे ऊंगलियों से आशियाँ बनाये . 
और मुहब्बत को महसूस किया . 

 पर, 
आज-कल ऐसा लगता है . 
इतनी भी निर्दई नही हो तुम . 
जब चाकू से प्याज के सीने को चीरती हो . 
आँखें भर जाती हैं तुम्हारी . 
इन्द्रधनुषी बातें तो ठीक, . 
पर जब बारिश मे बाहर से सूखते कपड़े लाने बोलती हो . 
अत्यंत ही मुश्किल लगता है . 
romantic होने मे effort लगता है . 
क्या ये प्रकृति के साथ बद्तमीज़ी की सज़ा है . 
या इसको maturity कहते हैं?