Monday, April 22, 2013

हे नारी!- एक गुहार 

हे नारी , तू ना हारी
बदल दे ये  सृष्टी सारी
ये कैसी विबेचना है
आराजकता को चबा डाल
उठ , सहनशीलता को त्याग
सुन , दुधुम्बी की नाद
बहुत हुआ संबाद
प्रलय नहीं आया है  तो- ला
ज़ोर लगा , हिमालय को हिला
हरेक हाथ जो तुम्हारी अस्मिता पे उठते हैं
उसे काट डाल
इस कुत्सित मानसिकता को नेस्तनाबूत कर
साँप के फन को कुचल डाल


हे नारी , तू ना हारी
बदल दे ये सृष्टी सारी

आँसुओं को पी ले - ज़हर उगल
अबला नहीं, तू चण्डिका बन
पाप का सर्वनाश कर
मत डर , निर्भय बन
आक्रोश दिखा - जलजला ला
अधिकार मत माँग - छीन ले
अपने मार्ग स्वयं प्रसस्त कर
भाग्य बिधाता बन
समाज का गिरेबान पकड़ ,
कलाई  मरोड़ और रस्ते पे ला ....