Saturday, January 22, 2011

लम्हे की उम्र

आओ इस पल को पलकों मे बसा लें, मेरी जानेजाना
ना जाने कल क्या हो, किसे पता- किसने जाना

आओ लम्हों मे जिंदगी जी लें
लम्हे के एक चौथाई हिस्से मे तुम रुठोगी
दूसरे चौथाई हिस्से मे मै मनाऊंगा
तीसरे मे तुम मान जाओगी और मेरी खुशियाँ सातवें आसमान पे होगी
फिर, चौथे हिस्से मे हम ज़ुदा हो जाएंगे

आओ इस पल को पलकों मे बसा लें मेरी जानेजाना
ना जाने कल क्या हो, किसे पता- किसने जाना

काश! जुदाई चौथाई लम्हों जितनी छोटी होती ....

Sunday, January 09, 2011

Ghazal.

सदियों की बात है शायद
उसको अभी तक याद है शायद

कभी ज़ाहिर किया नहीं
पर मुझसे उसको भी प्यार है शायद

रोया बहुत हूँ और आज भी अब तक
सामने पैमाना या आँसूओं का ज़ाम है शायद

रूठा तो कई बार - वक़्त किया ज़ाया बहुत
मुहब्बत के चंद लम्हे अबतक ज़हन में ताज़ा है शायद

जशन-ए-बर्बादी  या कहें इश्क इसे
दोनों में थोड़ा तो फ़र्क है शायद

हस्ती मिटती, ख़ाक मे मिलते- तो अच्छा था
ये ज़िन्दगी, साँसों का महज़  पुलिंदा है शायद