आराम सी जिंदगी है
बस में कम ही चलता हूँ मैं .
याद है मुझे बिहार में एक बार - बस का वो अनोखा सफ़र .
जाड़े के मौसम में एक ही सीट पर .
मेरे हाथों को अक्सर ढक लेते थे तुम्हारे shawl ..............................
वक़्त बदल गया है .
इसका मिजाज़ अब कुछ और ही है .
पर उस घर-घराते, बाबा के पुराने radio पर anytime गाना लगाना .
newspaper लौटाने के बहाने कुछ पलों का वो साथ
और
उन्हीं सेकंड्स में झट से' पूरी जिंदगी जी लेने का ज़ोर .
वो अपनी-अपनी छतों से एक ही तारे को एक साथ देखते रहना .
वो हमेशा मिलने की चाहत
और
एक-दूसरे में पूर्णतया समां जाने की अगन -
और
ना मिल पाने की घुटन .
वो लोगों की भीड़ में अनोखे अंदाज़ से मुझको देखना
और
वो छुपी-छुपी सी छुअन .
आह! क्या दिन थे....